उत्तराखंड की पांचो लोकसभा सीट की नई परिसीमन ने राज्य के चुनावी भूगोल को इस तरह बदल दिया है कि अब किसी एक क्षेत्र के सहारे चुनावी को नैया पार लगाना मुश्किल है। बदले हालात में उत्तराखंड का राजनीतिक मुकाबला एक ही तरह की पिच पर होना है। कुमाऊं, गढ़वाल व हरिद्वार की राजनीतिक निर्भरता एक-दूसरे पर बढ़ गई है। अब हरिद्वार व टिहरी सीट को आपस मे देहरादून जोड़ रहा है। पौड़ी सीट गढ़वाल व कुमाऊं को जोड़ने के साथ ही टिहरी तक फैल गई है। नैनीताल की पहाड़ियों का राजनीतिक सरोकार उधमसिंहनगर के मैदानों तक पहुंचा है। नये आयाम ले चुकी लोकसभा सीटों से मंजिल तक पहुंचने के लिए अब राजनीति को भी बदलने की मजबूरी आन पड़ी है। हर क्षेत्र में जाकर केवल वहां की बात करने से काम चलने वाला नहीं है। हर चार कोस पर बोली और हर कोस पर मिजाज बदलेगा, लेकिन चुनावी धरातल में कोई अंतर नहीं आएगा। पहाड़ व मैदान का अंतर नए परिसीमन ने काफी हद तक पाट दिया है। अब राजनेताओं को भी अपने राजनीतिक व्यवहार पर नए सिरे से पुनर्विचार करना होगा। राज्य की पांच लोकसभा सीटों की सूरत के साथ सीरत पर भी असर पड़ा है। सामाजिक आधार पर पौड़ी व अल्मोड़ा सीट का चेहरा काफी हद तक एक जैसा दिखाई देता है। दोनों सीटों पर ब्राह्मण, राजपूत, अनुसूचित जाति व जनजाति के मतदाता अधिक हैं। पहाड़ी क्षेत्रों की भरमार है। सीमांत इलाकों की अलग चुनौतियां रहेंगी। ग्रामीण क्षेत्रों तक जाना आसान नहीं होगा। पौड़ी सीट के अंतर्गत पांच जिलों की विधानसभाएं शामिल हैं, जिनकी अलग-अलग जरूरतें हैं। रामनगर के सामाजिक समीकरण कुछ अलग होंगे। इसी तरह अल्मोड़ा सीट में चार जिलों की नब्ज अलग तरीके से चलेगी। हरिद्वार व नैनीताल सीट की जो शक्ल उभरी है, उसमें एकरूपता अधिक है। हरिद्वार में सैनी, मुस्लिम, दलित व वैश्य बड़ी संख्या में हैं। ब्राह्मण व राजपूत मतदाताओं पर भी नजर रखनी होगी। देहरादून की तीन विधानसभा इस क्षेत्र में नई हैं, जो कोई नया गुल खिला सकती हैं। शहरी क्षेत्र व ग्रामीण क्षेत्रों का मूड अलग रहेगा। पंडा समाज को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। नैनीताल में मुस्लिम, सिक्ख, बंगाली, अनुसूचित जाति, जनजाति, राजपूत व ब्राह्मणों की भूमिका अहम रहेगी। उधमसिंह नगर में मुस्लिम, दलित, बंगाली व जनजाति अधिक हैं तो नैनीताल जनपद में ब्राह्मण व राजपूत। ऐसे में सभी समुदायों को पक्ष में करने की कड़ी चुनौती पेश आएगी। टिहरी सीट पर जौनसार, चकराता, टिहरी, उत्तरकाशी व देहरादून के शहरी क्षेत्रों का बिलकुल अलग तरह का वातावरण है। जौनसार की आवाज अलग होगी तो देहरादून के स्वर तल्ख होंगे। टिहरी अलग भाषा बोलेगा तो उत्तरकाशी नए अंदाज में दिखेगा। इस सीट पर ब्राह्मण, राजपूत, मुस्लिम, गोरखा, जनजाति, अनुसूचित जाति तथा वैश्य मतदाता खासी संख्या में हैं। क्षेत्र के लिहाज से भी इसमें एकरूपता नहीं है। इस बार के चुनाव में कुमाऊं और गढ़वाल के इलाके एक दुसरे से मिल रहे है इसका फायदा कौन उठाता है ये देखना भी दिलचस्प होगा।
लिया गया: दनिक जागरण
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