ग्लोबल वॉर्मिंग का सबसे पहला असर संभवत: हिमालय के ग्लेशियरों पर पड़ा था। एक नई स्टडी के मुताबिक 18वीं शताब्दी के मध्य से ही ये ग्लेशियर पिघलने शुरू हो गए थे। उत्तराखंड में प्रसिद्ध केदारनाथ धाम के पास चोराबारी ग्लेशियर में मोरैन की स्टडी करके विशेषज्ञ इस नतीजे पर पहुंचे हैं। मोरैन मिट्टी और पत्थरों के इकट्ठा होने से बनते हैं। यह स्टडी वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के रवींद्र कुमार चौजर के नेतृत्व में एक टीम ने की है।
इन मौरेन में 2 हजार लाइकेंस (एक प्रकार का जीव) पाए गए। इन लाइकेंस का ग्रोथ रेट और वातावरण के संपर्क में आने के बाद इनके बढ़ने में लगने वाले समय से पता चलता है कि इस इलाके में मौसम में परिवर्तन 258 साल पहले शुरू हो गया था। चौजर ने दावा किया कि चोराबारी ग्लेशियर 14वीं शताब्दी के मध्य में बनना शुरू हो गया था और 1748 ई. तक यह प्रक्रिया चलती रही।
इन मौरेन में 2 हजार लाइकेंस (एक प्रकार का जीव) पाए गए। इन लाइकेंस का ग्रोथ रेट और वातावरण के संपर्क में आने के बाद इनके बढ़ने में लगने वाले समय से पता चलता है कि इस इलाके में मौसम में परिवर्तन 258 साल पहले शुरू हो गया था। चौजर ने दावा किया कि चोराबारी ग्लेशियर 14वीं शताब्दी के मध्य में बनना शुरू हो गया था और 1748 ई. तक यह प्रक्रिया चलती रही।
पीटीआई
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